सोने के मुकाबले चांदी की चमक ज्यादा रही, क्योंकि एक साल में चांदी ने 40 प्रतिशत का रिटर्न दिया

इन दिनों निवेशकों का रुझान सोने से ज्यादा चांदी की ओर बढ़ता दिख रहा है। पिछले एक साल में जहां सोने ने 30 प्रतिशत का रिटर्न दिया, वहीं चांदी में निवेश करने वालों को लगभग 40 प्रतिशत का लाभ मिला है। वैश्विक हालात और औद्योगिक मांग में वृद्धि के कारण चांदी की कीमतें पहली बार एक लाख रुपए प्रति किलोग्राम के पार चली गई हैं।

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इन दिनों निवेशकों का रुझान सोने से ज्यादा चांदी की ओर बढ़ता दिख रहा है। पिछले एक साल में जहां सोने ने 30 प्रतिशत का रिटर्न दिया, वहीं चांदी में निवेश करने वालों को लगभग 40 प्रतिशत का लाभ मिला है। वैश्विक हालात और औद्योगिक मांग में वृद्धि के कारण चांदी की कीमतें पहली बार एक लाख रुपए प्रति किलोग्राम के पार चली गई हैं।


रूस के सेंट्रल बैंक द्वारा सोने के साथ चांदी का भी भंडारण करने की घोषणा और कई देशों में ब्याज दरों में कमी आने से चांदी की मांग और कीमत में तेजी आई है। इसके अलावा, सोलर एनर्जी, इलेक्ट्रिक वाहन और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में चांदी की बढ़ती खपत भी इसकी कीमतों में इजाफा कर रही है।


ग्लोबल मार्केट में सोने और चांदी के दाम तय होते हैं। पिछले छह महीनों में चांदी की कीमत में 17,000 रुपए प्रति किलोग्राम की बढ़त हुई, जबकि सालभर में यह बढ़ोतरी 30,000 रुपए प्रति किलोग्राम रही। पिछले साल अक्टूबर में चांदी की कीमत 72,000 रुपए प्रति किलोग्राम थी, जो अब 1,02,000 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है। वहीं, 24 कैरेट सोने की कीमत पिछले साल इसी समय 62,500 रुपए थी, जो अब बढ़कर 80,500 रुपए हो गई है।


आनंद राठी स्टॉक ब्रोकर्स के मनीष शर्मा के अनुसार, रूस के अलावा चीन और कई अन्य देशों के सेंट्रल बैंक भी अपने सोने के भंडार में चांदी को जोड़ रहे हैं। ये देश अपने डॉलर भंडार को घटाकर सोना, चांदी और अन्य बहुमूल्य धातुओं को शामिल कर रहे हैं।


चांदी की कीमतों में वृद्धि का एक बड़ा कारण यह है कि इसका 60 प्रतिशत हिस्सा औद्योगिक कामों में उपयोग होता है। सोलर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहन और इलेक्ट्रॉनिक्स का उत्पादन बढ़ने से चांदी की मांग भी तेजी से बढ़ी है। चूंकि चांदी की खदानें सीमित हैं और उत्पादन तुरंत नहीं बढ़ाया जा सकता, इसलिए इसकी कीमतों में तेजी आ रही है। नई खदानें शुरू करने में कम से कम पांच साल का समय लगता है।


विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्विक उथल-पुथल के बीच कई देश ब्याज दरों में कटौती कर रहे हैं, जिससे डॉलर कमजोर हो रहा है और निवेशकों का रुझान बुलियन मार्केट की ओर बढ़ रहा है। भारत में भी इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिक वाहनों के बढ़ते उत्पादन से चांदी की औद्योगिक खपत में इजाफा हो रहा है। चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में चांदी के आयात में 383 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जिससे इसकी मांग और भी बढ़ी है।