डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट भारत की अर्थव्यवस्था पर कई तरह से असर डाल सकती है

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल्स, नॉन-इलेक्ट्रिकल मशीनरी, फार्मा और केमिकल्स जैसे सेक्टरों में मैन्युफैक्चरिंग लागत बढ़ने का खतरा बढ़ गया है। मंगलवार को भी रुपया डॉलर के मुकाबले गिरकर 84.40 पर पहुंच गया। इन सेक्टरों के अधिकतर कच्चे माल का आयात किया जाता है, जिससे कमजोर रुपये के कारण अब आयात पर अधिक खर्च करना पड़ेगा। इसके अलावा, पेट्रोलियम और खाद के आयात बिल में भी वृद्धि से सरकार पर वित्तीय दबाव बढ़ेगा।

dollar vs rupee

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल्स, नॉन-इलेक्ट्रिकल मशीनरी, फार्मा और केमिकल्स जैसे सेक्टरों में मैन्युफैक्चरिंग लागत बढ़ने का खतरा बढ़ गया है। मंगलवार को भी रुपया डॉलर के मुकाबले गिरकर 84.40 पर पहुंच गया। इन सेक्टरों के अधिकतर कच्चे माल का आयात किया जाता है, जिससे कमजोर रुपये के कारण अब आयात पर अधिक खर्च करना पड़ेगा। इसके अलावा, पेट्रोलियम और खाद के आयात बिल में भी वृद्धि से सरकार पर वित्तीय दबाव बढ़ेगा।

सरकार किसानों को रियायती दर पर खाद उपलब्ध कराती है, और गैस सिलेंडर सहित कई ऊर्जा स्रोतों पर सब्सिडी भी देती है। आयात बिल बढ़ने से इन सब्सिडी का खर्च भी बढ़ेगा, जिससे सरकार अन्य खर्चों में कटौती कर सकती है।

क्या भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स का आयात अधिक है या निर्यात?

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन और निर्यात दोनों ही बढ़ रहे हैं, लेकिन अब भी आयात निर्यात से ज्यादा है। मोबाइल फोन सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामानों के कच्चे माल के लिए भारत आयात पर निर्भर है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के अप्रैल-सितंबर में भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 15.6 अरब डॉलर रहा, जबकि इलेक्ट्रॉनिक्स आयात 48 अरब डॉलर का हुआ। इसी तरह इलेक्ट्रिकल और नॉन-इलेक्ट्रिकल मशीनरी का आयात 26 अरब डॉलर का रहा। फार्मा और केमिकल्स के कच्चे माल का भी बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है।

क्या निर्यातकों को रुपये में गिरावट से फायदा होगा?

रुपये में गिरावट से निर्यातकों को फायदा होता है क्योंकि उन्हें डॉलर में भुगतान मिलता है। लेकिन कच्चे माल की कीमतें बढ़ने से वस्तुओं की मैन्युफैक्चरिंग लागत बढ़ जाएगी, जिससे घरेलू बाजार में ये महंगे हो सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी प्रतिस्पर्धात्मकता घट सकती है। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में निर्यात में सिर्फ 1% की बढ़ोतरी हुई, जबकि आयात में 6% की वृद्धि दर्ज की गई है, जिससे निर्यातकों को भी रुपये की गिरावट का खास लाभ नहीं होगा।

विदेश में पढ़ने वाले छात्रों के माता-पिता पर बढ़ेगा बोझ

रुपये में गिरावट से विदेश में पढ़ाई कर रहे छात्रों के माता-पिता पर खर्च बढ़ जाएगा, क्योंकि उन्हें डॉलर में अधिक भुगतान करना पड़ेगा। वहीं, उन परिवारों को रुपये की कमजोरी का फायदा मिलेगा जिनके रिश्तेदार विदेश से पैसा भेजते हैं।