देवउठनी एकादशी पर इन खास चीजों का दान करें, धन की कमी नहीं होगी
देवउठनी एकादशी का व्रत सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन साधक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत किया जाता है। मान्यता है कि देवउठनी एकादशी का व्रत रखने से सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व होता है। कहते हैं कि जो लोग इस दिन दान करते हैं, उनके घर में कभी भी सुख-समृद्धि की कमी नहीं रहती।
देवउठनी एकादशी का व्रत सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन साधक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत किया जाता है। मान्यता है कि देवउठनी एकादशी का व्रत रखने से सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व होता है। कहते हैं कि जो लोग इस दिन दान करते हैं, उनके घर में कभी भी सुख-समृद्धि की कमी नहीं रहती।
देवउठनी एकादशी पर दान के लिए शुभ वस्तुएं:
देवउठनी एकादशी पर पीले वस्त्र, मुरली, धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, उड़द, सिंघाड़ा, शकरकंदी, गन्ना, मौसमी फल, केसर, केला, हल्दी, मोर पंख और शंख का दान करना शुभ माना जाता है। दान करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इसे किसी अन्य व्यक्ति से साझा न करें, क्योंकि इसे छिपाकर करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इन चीजों का दान करने से आर्थिक उन्नति होती है और जीवन में कभी किसी चीज का अभाव नहीं रहता।
देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त:
पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 11 नवंबर की शाम 06:46 बजे होगी और यह तिथि 12 नवंबर की शाम 04:04 बजे समाप्त होगी। इस प्रकार, देवउठनी एकादशी का व्रत 12 नवंबर को रखा जाएगा। अगले दिन तुलसी विवाह का पर्व भी मनाया जाएगा। जो लोग इस व्रत का पालन कर रहे हैं, उन्हें पारण का समय देखकर ही व्रत खोलना चाहिए ताकि व्रत का पूरा फल प्राप्त हो सके।
देवउठनी एकादशी पूजा मंत्र:
1. शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम्।
लक्ष्मी-कान्तं कमल-नयनं योगिभिर्ध्यान-गम्यम्।
वन्दे विष्णुं भव-भय-हरं सर्व-लोकैक-नाथम्।।
2. ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।
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