डॉ. राधाकृष्णन के एक विचार से शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई थी

‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु अपने, गोविंद दियो बताय।’ इस दोहे का पाठ हमने सभी ने कभी न कभी जरूर किया होगा। संत कबीर दास द्वारा रचित इस दोहे में गुरु की महत्वता और शिष्य के प्रति उनके सम्मान का बहुत ही सुंदर वर्णन है। गुरु हमारे जीवन में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं, जो हमें न केवल समाज में जीने का सही तरीका सिखाते हैं, बल्कि हमारे भविष्य को भी उज्ज्वल बनाते हैं। 

dr radharishnan

‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु अपने, गोविंद दियो बताय।’ इस दोहे का पाठ हमने सभी ने कभी न कभी जरूर किया होगा। संत कबीर दास द्वारा रचित इस दोहे में गुरु की महत्वता और शिष्य के प्रति उनके सम्मान का बहुत ही सुंदर वर्णन है। गुरु हमारे जीवन में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं, जो हमें न केवल समाज में जीने का सही तरीका सिखाते हैं, बल्कि हमारे भविष्य को भी उज्ज्वल बनाते हैं। 


गुरु के प्रति इस आभार और सम्मान को व्यक्त करने के लिए भारत में हर साल 5 सितंबर को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाता है। हालाँकि, विश्व शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाता है, लेकिन भारत में इसे 5 सितंबर को मनाने के पीछे एक विशेष कारण है। यह दिन हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में चुना गया है, जिनके शिक्षा के प्रति गहरे प्रेम और योगदान को स्मरण करते हुए इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।