जानिए कब है प्रदोष व्रत, शिव जी की आराधना से मिलेगा क्या फल, जानिए सम्पूर्ण पूजन विधि

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह त्रयोदशी तिथि के दोनों पक्षों में प्रदोष व्रत रखा जाता है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती हैं। चैत्र मास की त्रयोदशी तिथि प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस बार प्रदोष व्रत 29 मार्च, मंगलवार के दिन रखा जाएगा। इसलिए इस प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत या मंगल प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा। इसके साथ ही इस दिन मासिक शिवरात्रि भी पड़ रही है। जिसके कारण इस दिन का व्रत और भी ज्यादा फलदायी साबित होगा।

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स्टोरी हाइलाइट्स
  • हिंदू पंचांग के अनुसार
  • हर माह त्रयोदशी तिथि के दोनों पक्षों में प्रदोष व्रत रखा जाता है
  • प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती हैं

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह त्रयोदशी तिथि के दोनों पक्षों में प्रदोष व्रत रखा जाता है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती हैं। चैत्र मास की त्रयोदशी तिथि प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस बार प्रदोष व्रत 29 मार्च, मंगलवार के दिन रखा जाएगा। इसलिए इस प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत या मंगल प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा। इसके साथ ही इस दिन मासिक शिवरात्रि भी पड़ रही है। जिसके कारण इस दिन का व्रत और भी ज्यादा फलदायी साबित होगा।

माना जाता है कि जो व्यक्ति मंगल प्रदोष के दिन विधि-विधान से शिव जी की पूजा करने के साथ व्रत रखता है। उसे हर तरह के रोग, कर्ज आदि से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही जीवन में सुख,-समृद्धि, खुशहाली के साथ संतान की प्राप्ति होती है। जानिए भौम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त पूजा विधि और व्रत कथा।

मंगल प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त

त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ: 29 मार्च, मंगलवार को दोपहर 2 बजकर 38 मिनट पर से शुरू

त्रयोदशी तिथि का समाप्त: 30 मार्च बुधवार को दोपहर 01 बजकर 19 मिनट तक

प्रदोष काल: 29 मार्च शाम 06 बजकर 37 मिनट से रात 08 बजकर 57 मिनट तक

भौम प्रदोष व्रत पूजा विधि

प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों को निपटाकर स्नान कर लें। इसके बाद भगवान शिव को याद करते हुए व्रत का संकल्प लें। इसके बाद पूरा दिन बिना अन्न ग्रहण किए व्रत रखना चाहिए और शिव जी की पूजा करना चाहिए। इसी तरह शाम के समय स्नान करके सफेद रंग के कपड़े धारण कर लें। इसके बाद उत्तर-पूर्व दिशा को साफ करके गंगाजल छिड़क दें। इसके बाद रंग, आटा या फूल से रंगोली बना लें और उसके ऊपर चौकी रखकर एक साफ कपड़ा बिछा दें। इसके बाद इसमें भगवान शिव और माता पार्वती की तस्वीर या फिर मूर्ति स्थापित करें और खुद भी आसन में बैठ जाएं। इसके बाद पूजा प्रारंभ करें।

सबसे पहले जल से आचमन करें। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती को फूल, पुष्प माला, बेलपत्र, धतूरा आदि चढ़ाएं। इसके बाद चंदन लगाएं और फिर भोग में मिठाई और पान में 2 बताशा, दो इलायची, दो लौंग रखकर चढ़ा दें। इसके बाद जल अर्पित करें। फिर घी का दीपक और धूपबत्ती जला दें और ध्यान करते हुए शिव चालीसा का पाठ करें और मंगल प्रदोष व्रत की कथा पढ़े। इसके बाद शिव जी की विधिवत आरती करते हुए पानी से आचमन कर दें और फिर सभी को प्रसाद बांट दें।