खुदरा महंगाई दर के आधार पर ब्याज दर में कटौती क्या समय आ गया है परंपरा बदलने का
वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में ब्याज दरों में कटौती की वकालत की है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अगले महीने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में आरबीआई इसे कितनी गंभीरता से लेता है। हालांकि, यह चर्चा जोर पकड़ चुकी है कि क्या खुदरा महंगाई दर के आधार पर ब्याज दरों में कटौती का निर्णय लेना उचित है।
वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में ब्याज दरों में कटौती की वकालत की है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अगले महीने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में आरबीआई इसे कितनी गंभीरता से लेता है। हालांकि, यह चर्चा जोर पकड़ चुकी है कि क्या खुदरा महंगाई दर के आधार पर ब्याज दरों में कटौती का निर्णय लेना उचित है।
वित्त वर्ष 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण में भी इस पर सवाल उठाए गए थे। इसमें कहा गया था कि खुदरा महंगाई दर में खाद्य और ऊर्जा की कीमतें भी शामिल होती हैं, जबकि ब्याज दरें तय करते समय सिर्फ कोर महंगाई दर (जो खाद्य और ऊर्जा को छोड़कर अन्य वस्तुओं पर आधारित होती है) को प्राथमिकता देनी चाहिए। अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे देशों में भी ब्याज दर निर्धारण के लिए कोर महंगाई दर को ही मापदंड माना जाता है।
खाद्य महंगाई के कारण
पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् और प्रख्यात अर्थशास्त्री टीसीए अनंत मौजूदा खुदरा महंगाई दर को ब्याज दर तय करने का आधार बनाने के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि खाद्य वस्तुओं की कीमतें अक्सर आपूर्ति की तंगी के कारण बढ़ती हैं। वहीं, अगर अन्य वस्तुओं की कीमतें मांग के कारण बढ़ती हैं, तो मौद्रिक नीतियों के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी हाल ही में तर्क दिया कि आलू, प्याज और टमाटर जैसी मौसमी वस्तुओं की कीमतें खुदरा महंगाई दर को बढ़ा रही हैं। जबकि अन्य वस्तुओं की महंगाई दर नियंत्रण में है। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि अक्टूबर में महंगाई दर 6.2 प्रतिशत रही, जो पिछले 14 महीनों में सबसे अधिक है।
आरबीआई और ब्याज दरों में कटौती
महंगाई दर अधिक होने पर आरबीआई ब्याज दरों में कटौती से बचता है। इसका कारण यह है कि सस्ते लोन से बाजार में मांग बढ़ जाती है, जिससे वस्तुओं की कीमतों पर और दबाव आ सकता है।
मौसमी कीमतों के आधार पर ब्याज दर तय करना
स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक अश्विनी महाजन का मानना है कि सब्जियों जैसी मौसमी वस्तुओं की कीमतों को आधार बनाकर ब्याज दरों का निर्धारण करना बड़ी भूल होगी। उन्होंने कहा कि भारत जैसे विकासशील देश में मौद्रिक नीति का उद्देश्य आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और गरीबों का उत्थान होना चाहिए।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि थोक और खुदरा महंगाई दर में बड़ा अंतर होता है, इसलिए सिर्फ महंगाई दर को ब्याज दर तय करने का आधार बनाना सही नहीं है। आरबीआई ने खुदरा महंगाई दर की अधिकतम सीमा छह प्रतिशत और न्यूनतम सीमा दो प्रतिशत तय की है। चार प्रतिशत के करीब महंगाई दर को ब्याज दर में कटौती के लिए आदर्श माना जाता है।
वहीं, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के प्रोफेसर पिनाकी चक्रवर्ती का कहना है कि सरकार और आरबीआई दोनों अपनी जगह सही हैं। भारत में महंगाई दर ही ब्याज दर निर्धारण का मुख्य साधन है, और देश की अर्थव्यवस्था अत्यधिक जटिल है।
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