
ये हैं पाँच ऐसे दिन, जिनपर पंचांग की आवश्यकता के बिना शुभ कार्य किए जा सकते हैं
हिंदू शास्त्रों में शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व बताया गया है। कोई भी शुभ कार्य बिना शुभ मुहूर्त के करना अच्छा नहीं माना जाता। वहीं अगर शुभ मुहूर्त का ध्यान रखा जाए तो इससे साधक को दोगुना फल प्राप्त होता है। शास्त्रों में कुछ ऐसी तिथियां भी होती हैं, जिन पर मुहूर्त देखने की कोई जरूरत नहीं रहती। ऐसी तिथियों को अबूझ मुहूर्त या 'स्वयं सिद्ध मुहूर्त' कहा जाता है।

हिंदू शास्त्रों में शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व बताया गया है। कोई भी शुभ कार्य बिना शुभ मुहूर्त के करना अच्छा नहीं माना जाता। वहीं अगर शुभ मुहूर्त का ध्यान रखा जाए तो इससे साधक को दोगुना फल प्राप्त होता है। शास्त्रों में कुछ ऐसी तिथियां भी होती हैं, जिन पर मुहूर्त देखने की कोई जरूरत नहीं रहती। ऐसी तिथियों को अबूझ मुहूर्त या 'स्वयं सिद्ध मुहूर्त' कहा जाता है।
शुभ मुहूर्त का महत्व:
सनातन धर्म में शुभ समय या शुभ मुहूर्त का बहुत ही अधिक महत्व है। धर्म-कर्म के कार्यों में मुहूर्त जरूरी रूप से देखा जाता है। माना जाता है कि इन मुहूर्तों को देखकर किया गया कार्य हमेशा शुभता लाता है। साथ ही शुभ मुहूर्त देखकर किए गए कार्यों में व्यक्ति को हमेशा सफलता मिलती है।
ये हैं पांच स्वयं सिद्ध मुहूर्त:
फुलेरा दूज: इस दिन पर श्रीकृष्ण और राधा रानी के साथ फूलों की होली खेली जाती है। यह दिन सगाई या विवाह के लिए सर्वोत्तम माना गया है।
वसंत पंचमी: इस तिथि पर बुद्धि देने वाली देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इसे भी एक अबूझ मुहूर्त माना गया है।
विजयादशमी: इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन पर भगवान राम ने रावण का वध किया था।
अक्षय तृतीया: इस दिन पर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन को भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
देवउठनी एकादशी: इसे हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। माना जाता है कि कार्तिक माह की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु 4 महीने बाद योग निद्रा से जागते हैं। इसलिए यह भी एक अबूझ मुहूर्त माना गया है।
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