
तेलंगाना के राज्यपाल और राज्य सरकार फिर आये आमने-सामने, राज्य के स्थापना दिवस समारोह में सरकार ने राज्यपाल को नहीं दिया निमंत्रण
तेलंगाना की आज यानी 2 जून को स्थापना हुई थी। स्थापना दिवस के मौके पर सरकार और राज्यपाल में खींचतान देखने को मिली है। हालांकि, दोनों में पहले भी टकराव की खबरें सामने आई है, लेकिन इस बार मुद्दा तेलंगाना स्थापना दिवस समारोह है, जिसमें राज्यपाल को ही नहीं बुलाया गया है।

- Telangana Foundation Day
तेलंगाना की आज यानी 2 जून को स्थापना हुई थी। स्थापना दिवस के मौके पर सरकार और राज्यपाल में खींचतान देखने को मिली है। हालांकि, दोनों में पहले भी टकराव की खबरें सामने आई है, लेकिन इस बार मुद्दा तेलंगाना स्थापना दिवस समारोह है, जिसमें राज्यपाल को ही नहीं बुलाया गया है।
समारोह में सरकार ने नहीं भेजा निमंत्रण
राजभवन के अनुसार, Telangana Formation Day की पूर्व संध्या पर राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन को समारोह के लिए राज्य सरकार से कोई निमंत्रण नहीं दिया गया। अब राज्यपाल राजभवन में तेलंगाना स्थापना दिवस समारोह में भाग लेंगी।
कई बार हुआ टकराव
इससे पहले भी राज्यपाल और सरकार में टकराव देखा गया था, जब राज्य सरकार ने राज्यपाल को तेलंगाना सचिवालय के उद्घाटन के लिए आमंत्रित नहीं किया था। इसको लेकर हाल ही में राज्यपाल ने नाराजगी भी जताई थी।
राज्यपाल ने विपक्ष पर जताई थी नाराजगी
नई संसद के उद्घाटन का विपक्षी दलों द्वारा विरोध जताने और राष्ट्रपति को इसमें बुलाने की मांग को लेकर तेलंगाना की राज्यपाल ने फटकार लगाई थी। सुंदरराजन ने एक समारोह में कहा था कि विपक्ष के नेता राष्ट्रपति को तो गैर-राजनीतिक व्यक्ति मानते हैं, लेकिन राज्यपाल को ऐसा नहीं मानते।
उन्होंने इसी के साथ केसीआर सरकार द्वारा सचिवालय के उद्घाटन समारोह में उन्हें न बुलाने की भी बात कही।
आज के दिन हुई थी तेलंगाना की स्थापना
तेलंगाना की आज ही के दिन 2014 को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापना हुई थी। इससे पहले तेलंगाना आंध्र प्रदेश का हिस्सा था। वैसे तो तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग 1969 में ही उठ गई थी, लेकिन 1972 और 2009 में इसके लिए दो बड़े आंदोलन हुए। इन आंदोलनों के चलते ही तेलंगाना अस्तित्व में आया।
बता दें कि 2009 का आंदोलन काफी बड़े स्तर पर हुआ था और चंद्रशेखर राव (केसीआर) भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। इसके बाद कई सालों तक शांतिपूर्ण विरोध के बाद तेलंगाना के लोगों की मांग मान ली गई।
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