विजयदशमी नहीं बल्कि इस दिन होता है रावण का पुतला दहन, जानते हैं बिहार का ऐसा गांव जिसमे दशानन को जिंदा रहने के लिए मिलते हैं और सात दिन

असत्य पर सत्य एवं बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजयदशमी के दिन ही पूरे देश भर में रावण का पुतला जलाया जाता है, लेकिन बिहार के इटाढ़ी प्रखंड अंतर्गत कुकुढ़ा गांव में रावण को सात दिन और जिंदा रहने का मोहलत मिल जाती है।

स्टोरी हाइलाइट्स
  • इन खास दिनों में भी नहीं होता वध

असत्य पर सत्य एवं बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजयदशमी के दिन ही पूरे देश भर में रावण का पुतला जलाया जाता है, लेकिन बिहार के इटाढ़ी प्रखंड अंतर्गत कुकुढ़ा गांव में रावण को सात दिन और जिंदा रहने का मोहलत मिल जाती है।



सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार विजयदशमी से पांच दिन बाद शरद पूर्णिमा को यहां रावण वध होता है। इस संबंध में चुनमुन चौबे ने बताया कि इस साल चंद्रग्रहण होने के कारण रावण वध नहीं हुआ। यह काम सोमवार को होगा।

इन खास दिनों में भी नहीं होता वध
उन्होंने बताया कि जिस दिन रविवार व मंगलवार को शरद पूर्णिमा पड़ती है, उस दिन भी रावण का वध कार्यक्रम नहीं होता है। बता दें कि सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन आज भी यहां के ग्रामीण बड़े उत्साह एवं उमंग के साथ करते हैं। गांव के प्रेमचंद व्यास ने बताया कि यहां की रामलीला की प्रस्तुति भी निराली है।
गांव में नवरात्रि की पहली तिथि से रामलीला का शुभारंभ होता है। देश भर में रामलीला के अभिनय का प्रदर्शन भगवान श्री राम के जन्मोत्सव से होता है। यहां पहली नवरात्रि को प्रभु श्री राम के वन गमन के साथ इसका शुभारंभ किया जाता है।



पुरखों से जारी है परंपरा
भरत बारी व रामाशीष सिंह बताते हैं कि गांव के बड़े बुजुर्गों का कहना है कि गांव में सदियों से परंपरा चली आ रही है। अपने दादा परदादा से भी उन्होंने शरद पूर्णिमा के बाद रावण वध का आयोजन होते सुना है।
पुरुषों से विरासत में मिली इस परंपरा को आज भी पूरे उत्साह के साथ यहां के ग्रामीणों द्वारा किया जाता है। रावण वध कार्यक्रम देखने के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं तथा मेला का भी आनंद लेते हैं।