नवरात्री के उपरान्त कलश उठाते समय इन बातों पर ध्यान दें, जल्द ही मिलेगा पूजा का शुभ फल
मां दुर्गा को समर्पित नवरात्र हिंदू धर्म में काफी धूमधाम से मनाया जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है। इसके साथ ही आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि से शुरू हुए नवरात्र के पहले दिन ही कलश स्थापना की जाती है। जिसका विसर्जन नवमी या दशमी तिथि को करना शुभ माना जाता है।
मां दुर्गा को समर्पित नवरात्र हिंदू धर्म में काफी धूमधाम से मनाया जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है। इसके साथ ही आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि से शुरू हुए नवरात्र के पहले दिन ही कलश स्थापना की जाती है। जिसका विसर्जन नवमी या दशमी तिथि को करना शुभ माना जाता है।
निर्णय-सिन्धु के अनुसार, नवरात्र का व्रत प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक करना चाहिए। तभी वह पूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार जिस तरह कलश स्थापना करते समय विधि विधान का ध्यान रखा जाता है।
मंत्र
या देवि सर्वभूतेषु शांति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
ऐसे करें कलश विसर्जन
मां दुर्गा और कलश की विधिवत पूजा करने के बाद विसर्जन करना बेहद जरूरी है। कलश उठाते समय इस मंत्र को बोलते रहें- ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
सबसे पहले कलश के ऊपर रखें नारियल को धीमे से उठाएं और अपने माथे में लगाएं। इसके बाद नारियल, चुनरी आदि घर में मौजूद पत्नी, मां या फिर बहन की गोद में रख दें। इसके बाद आम के पत्तों से कलश में मौजूद पानी को पूरे घर में छिड़क दें। इस बात का ध्यान रखें कि जल छिड़कने की शुरुआत किचन से करें। क्योंकि यहां पर मां अन्नपूर्णा के साथ मां लक्ष्मी का वास होता है। इसके बाद घर के हर एक कोने में छिड़क दें। बस बाथरूम, शौचालय में न छिड़के। इसके बाद बचे हुए डल को तुलसी या फिर किसी पेड़ में डाल दें।
कलश में जो सिक्का था उसे उठाकर माथे से लगाकर अपनी तिजोरी या पर्स में रख लें और हमेशा रखे रहें। कलश और अखंड ज्योति में बंधे कलावा को धीमे से खोलकर अपने हाथों में बांध लें।
अखंड ज्योति को दशहरा की रात शाम तक प्रज्जवलित करके रखें इसके साथ ही जौ को अपने गार्डन या फिर किसी गमले में रख दें। आप चाहे तो इसका सेवन भी कर सकते हैं।
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