पंचायत-2 का खत्म हुआ इंतज़ार, निर्धारित डेट से पहले ही कर दी रीलीज़

अमेजन प्राइम वीडियो की चर्चित वेब सीरीज पंचायत एक ऐसी दुनिया को दिखाती है, जिससे गांव-कस्बे में रहने वाला हर शख्स वाकिफ है, मगर फिर भी जब वो इस दुनिया को स्क्रीन पर देखता है तो इसमें डूबने लगता है। पंचायत की सबसे बड़ी खूबी यही है कि सब कुछ इतना वास्तविक-सा लगता है कि दर्शक को कथ्य और किरदारों से जुड़ते देर नहीं लगतीहर फील्ड में किया गया कमाल का काम
भाषा-लहजे से लेकर किरदारों की शारीरिक भाषा और पहनावा जाना-पहचाना लगता है। आज भले ही महानगरों में बैठे हों, मगर उस जीवन को करीब से देखने वाला हर शख्स पंचायत को देखकर यादों में डूबता-उतराता है। फुलेरा गांव के किस्सों को आगे बढ़ाते हुए पंचायत का दूसरा सीजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम किया जा चुका है। वैसे तो दूसरे सीजन को रिलीज करने के लिए 20 मई की तारीख मुकर्रर की गयी थी, मगर कुछ तकनीकी कारणों से प्लेटफॉर्म ने 18 मई की रात ही सारे एपिसोड्स स्ट्रीम कर दिये और पंचायत के फैंस को मुंहमांगी मुराद मिल गयी।
हर एपिसोड में एक अलग  पहलू को छुआ गया है
दूसरे सीजन में लगभग आधे-आधे घंटे के आठ एपिसोड्स हैं, जिनमें फुलेरा गांव की ग्राम प्रधान मंजू देवी, प्रधान पति ब्रज भूषण दुबे, उप प्रधान प्रह्लाद पांडेय, कार्यालय सहायक विजय और पंचायत सचिव अभिषेक त्रिपाठी के नये किस्से और ग्रामीण जीवन की रोमांचक यात्रा दिखायी गयी है। सीरीज का आखिरी एपिसोड सबसे लम्बा 45 मिनट का है और सबसे अधिक इमोशनल भी। दूसरे सीजन में मुख्य किरदारों पर कुछ सहायक किरदार भारी पड़े हैं और अपन अभिनय से उन्होंने सीजन का टेम्पो हाई रखा है।
इस सीजन को भी पहले सीजन की तरह मिल रहा भरपूर प्यार
पहले सीजन की तरह पंचायत सीजन 2 के हर एपिसोड में एक नया एडवेंचर है, जिसे शो की मुख्य स्टार कास्ट जूझती नजर आती है। पहले एपिसोड में ईंट भट्टे के लिए मिट्टी की डील का मसला सामने आता है, जिसे प्रधान मंजू देवी से डील करने के लिए कहा जाता है। जब बात पटरी से उतर जाती है तो सचिव जी को स्थिति सम्भलाने के लिए भेजा जाता है। दूसरे सीजन में ग्रामीण सियासत को भी घटनाक्रमों के जरिए रेखांकित किया गया है। मंजू देवी की प्रधानी को चुनौती देने वाला किरदार भूषण इस सीजन के रोमांच को बढ़ाता है।
कहानी के कुछ मुख्य तथ्य इस प्रकार से हैं
एमबीए की तैयारी कर रहे सचिव जी के दोस्त सिद्धार्थ का ट्रैक ग्रामीण-शहरी जीवन के पॉजिटिव और नेगेटिव पहलू भी सामने आये हैं। गांव में सीसीटीवी लगने के घटनाक्रम को मजेदार ढंग से पिरोया गया है और यह ट्रैक मुख्य कथानक को सपोर्ट करते हुए चलता है। स्थानीय विधायक की एंट्री से प्रधान पति दुबे जी और सचिव के संबंधों में उतार-चढ़ाव दिलचस्प ट्रैक के रूप में सामने आया है। विधायक की सचिव जी के लिए नफरत और ट्रांसफर की कोशिश ने तीसरे सीजन के पृष्ठभूमि तैयार कर दी है। अगला सीजन प्रधान जी, विधायक और सचिव जी के बीच सियासी दाव-पेंचों को लेकर आएगा।
पहली वाली सरीज़ के घटनाक्रम से जुड़ी हुए हैं इस कहानी के तार
पंचायत 2 के पहले सात एपिसोड्स में फुलेरा में हो रहे सामान्य घटनाक्रमों को दिखाया गया है, मगर आखिरी एपिसोड एक अप्रत्याशित घटना लेकर आता है, जो इस सीजन की हाइलाइट है। जय जवान जय किसान का नारा इसी एपिसोड में जाकर पूरा होता है और भावनात्मक रूप से सीजन को ऊंचाई पर लेकर जाता है। यह एपिसोड विधायक और सचिव जी के बीच अचानक हुई रंजिश को बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम भी करता है। पंचायत सीरीज की सबसे बड़ी खासियत इसका सादगी भरा लेखन है।
संवाद ने भी विशेष ध्यान आकर्षित किया
दृश्यों के संयोजन से लेकर संवाद तक में स्थानीयता और सहजता मन मोह लेती है और इन किरदारों से जुड़ते हुए देर नहीं लगती। चंदन कुमार के लिखे को निर्देशक दीपक कुमार मिश्रा ने उतने ही प्रभावी ढंग से कैमरे में कैद किया गया है। लेखन और निर्देशन का यह सामंजस्य पंचायत के दूसरे सीजन में भी जारी रहता है। अगर सम्पूर्णता में देखें तो पंचायत 2 की पटकथा मनोरंजक और बांधकर रखने वाली है, मगर दूसरे सीजन में कुछ किरदार हलके पड़ गये हैं। खासकर, प्रधान मंजू देवी का किरदार इस बार उस तरह से उठ नहीं पाता, जहां वो पहले सीजन के आखिरी एपिसोड में छूटा था। दूसरे सीजन में इस किरदार के और उभरने की आशा थी। आठवें एपिसोड में जरूर मंजू देवी का निर्णायक रूप नजर आता है। इस सीजन में उप प्रधान प्रह्लाद पांडेय और कार्यालय सहायक विजय के किरदारों को खूब उभरने का मौका मिला और इन्हें निभाने वाले दोनों कलाकार फैसल मलिक और चंदन रॉय ने अपने अभिनय से कमाल किया है।
पहले सीजन की तरह मंजू देवी के किरदार में नीना गुप्ता, ब्रज भूषण दुबे के किरदार में रघुबीर यादव और सचिव जी के किरदार में जितेंद्र कुमार ने सहज लगे हैं। प्रधान जी की बेटी रिंकी के किरदार में सान्विका प्रभावित करती हैं। विधायक के किरदार में पंकज झा की एंट्री जबरदस्त रही है। इस किरदार के एटिट्यूड को पंकज ने पूरी तबीयत से पेश किया किया है। अंतिम एपिसोड्स में आकर पंकज पूरा असर छोड़ते हैं। भाषा, संवाद, मैनेरिज्म के लिहाज से अपने किरदारों में ये तकरीबन मुकम्मल लगते हैं। हालांकि, इनके कैरेक्टर ग्राफ में बहुत बदलाव नहीं हैं।पंचायत के फैंस दूसरे सीजन से निराश नहीं होंगे। हालांकि, पहले सीजन के मुकाबले इस सीजन के घटनाक्रम सपाट हैं, मगर इतना तय है कि फुलेरा गांव आपको जाने नहीं देगा।र)

स्टोरी हाइलाइट्स
  • पहली वाली सरीज़ के घटनाक्रम से जुड़ी हुए हैं इस कहानी के तार

अमेजन प्राइम वीडियो की चर्चित वेब सीरीज पंचायत एक ऐसी दुनिया को दिखाती है, जिससे गांव-कस्बे में रहने वाला हर शख्स वाकिफ है, मगर फिर भी जब वो इस दुनिया को स्क्रीन पर देखता है तो इसमें डूबने लगता है। पंचायत की सबसे बड़ी खूबी यही है कि सब कुछ इतना वास्तविक-सा लगता है कि दर्शक को कथ्य और किरदारों से जुड़ते देर नहीं लगतीहर फील्ड में किया गया कमाल का काम
भाषा-लहजे से लेकर किरदारों की शारीरिक भाषा और पहनावा जाना-पहचाना लगता है। आज भले ही महानगरों में बैठे हों, मगर उस जीवन को करीब से देखने वाला हर शख्स पंचायत को देखकर यादों में डूबता-उतराता है। फुलेरा गांव के किस्सों को आगे बढ़ाते हुए पंचायत का दूसरा सीजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम किया जा चुका है। वैसे तो दूसरे सीजन को रिलीज करने के लिए 20 मई की तारीख मुकर्रर की गयी थी, मगर कुछ तकनीकी कारणों से प्लेटफॉर्म ने 18 मई की रात ही सारे एपिसोड्स स्ट्रीम कर दिये और पंचायत के फैंस को मुंहमांगी मुराद मिल गयी।
हर एपिसोड में एक अलग  पहलू को छुआ गया है
दूसरे सीजन में लगभग आधे-आधे घंटे के आठ एपिसोड्स हैं, जिनमें फुलेरा गांव की ग्राम प्रधान मंजू देवी, प्रधान पति ब्रज भूषण दुबे, उप प्रधान प्रह्लाद पांडेय, कार्यालय सहायक विजय और पंचायत सचिव अभिषेक त्रिपाठी के नये किस्से और ग्रामीण जीवन की रोमांचक यात्रा दिखायी गयी है। सीरीज का आखिरी एपिसोड सबसे लम्बा 45 मिनट का है और सबसे अधिक इमोशनल भी। दूसरे सीजन में मुख्य किरदारों पर कुछ सहायक किरदार भारी पड़े हैं और अपन अभिनय से उन्होंने सीजन का टेम्पो हाई रखा है।
इस सीजन को भी पहले सीजन की तरह मिल रहा भरपूर प्यार
पहले सीजन की तरह पंचायत सीजन 2 के हर एपिसोड में एक नया एडवेंचर है, जिसे शो की मुख्य स्टार कास्ट जूझती नजर आती है। पहले एपिसोड में ईंट भट्टे के लिए मिट्टी की डील का मसला सामने आता है, जिसे प्रधान मंजू देवी से डील करने के लिए कहा जाता है। जब बात पटरी से उतर जाती है तो सचिव जी को स्थिति सम्भलाने के लिए भेजा जाता है। दूसरे सीजन में ग्रामीण सियासत को भी घटनाक्रमों के जरिए रेखांकित किया गया है। मंजू देवी की प्रधानी को चुनौती देने वाला किरदार भूषण इस सीजन के रोमांच को बढ़ाता है।
कहानी के कुछ मुख्य तथ्य इस प्रकार से हैं
एमबीए की तैयारी कर रहे सचिव जी के दोस्त सिद्धार्थ का ट्रैक ग्रामीण-शहरी जीवन के पॉजिटिव और नेगेटिव पहलू भी सामने आये हैं। गांव में सीसीटीवी लगने के घटनाक्रम को मजेदार ढंग से पिरोया गया है और यह ट्रैक मुख्य कथानक को सपोर्ट करते हुए चलता है। स्थानीय विधायक की एंट्री से प्रधान पति दुबे जी और सचिव के संबंधों में उतार-चढ़ाव दिलचस्प ट्रैक के रूप में सामने आया है। विधायक की सचिव जी के लिए नफरत और ट्रांसफर की कोशिश ने तीसरे सीजन के पृष्ठभूमि तैयार कर दी है। अगला सीजन प्रधान जी, विधायक और सचिव जी के बीच सियासी दाव-पेंचों को लेकर आएगा।
पहली वाली सरीज़ के घटनाक्रम से जुड़ी हुए हैं इस कहानी के तार
पंचायत 2 के पहले सात एपिसोड्स में फुलेरा में हो रहे सामान्य घटनाक्रमों को दिखाया गया है, मगर आखिरी एपिसोड एक अप्रत्याशित घटना लेकर आता है, जो इस सीजन की हाइलाइट है। जय जवान जय किसान का नारा इसी एपिसोड में जाकर पूरा होता है और भावनात्मक रूप से सीजन को ऊंचाई पर लेकर जाता है। यह एपिसोड विधायक और सचिव जी के बीच अचानक हुई रंजिश को बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम भी करता है। पंचायत सीरीज की सबसे बड़ी खासियत इसका सादगी भरा लेखन है।
संवाद ने भी विशेष ध्यान आकर्षित किया
दृश्यों के संयोजन से लेकर संवाद तक में स्थानीयता और सहजता मन मोह लेती है और इन किरदारों से जुड़ते हुए देर नहीं लगती। चंदन कुमार के लिखे को निर्देशक दीपक कुमार मिश्रा ने उतने ही प्रभावी ढंग से कैमरे में कैद किया गया है। लेखन और निर्देशन का यह सामंजस्य पंचायत के दूसरे सीजन में भी जारी रहता है। अगर सम्पूर्णता में देखें तो पंचायत 2 की पटकथा मनोरंजक और बांधकर रखने वाली है, मगर दूसरे सीजन में कुछ किरदार हलके पड़ गये हैं। खासकर, प्रधान मंजू देवी का किरदार इस बार उस तरह से उठ नहीं पाता, जहां वो पहले सीजन के आखिरी एपिसोड में छूटा था। दूसरे सीजन में इस किरदार के और उभरने की आशा थी। आठवें एपिसोड में जरूर मंजू देवी का निर्णायक रूप नजर आता है। इस सीजन में उप प्रधान प्रह्लाद पांडेय और कार्यालय सहायक विजय के किरदारों को खूब उभरने का मौका मिला और इन्हें निभाने वाले दोनों कलाकार फैसल मलिक और चंदन रॉय ने अपने अभिनय से कमाल किया है।
पहले सीजन की तरह मंजू देवी के किरदार में नीना गुप्ता, ब्रज भूषण दुबे के किरदार में रघुबीर यादव और सचिव जी के किरदार में जितेंद्र कुमार ने सहज लगे हैं। प्रधान जी की बेटी रिंकी के किरदार में सान्विका प्रभावित करती हैं। विधायक के किरदार में पंकज झा की एंट्री जबरदस्त रही है। इस किरदार के एटिट्यूड को पंकज ने पूरी तबीयत से पेश किया किया है। अंतिम एपिसोड्स में आकर पंकज पूरा असर छोड़ते हैं। भाषा, संवाद, मैनेरिज्म के लिहाज से अपने किरदारों में ये तकरीबन मुकम्मल लगते हैं। हालांकि, इनके कैरेक्टर ग्राफ में बहुत बदलाव नहीं हैं।पंचायत के फैंस दूसरे सीजन से निराश नहीं होंगे। हालांकि, पहले सीजन के मुकाबले इस सीजन के घटनाक्रम सपाट हैं, मगर इतना तय है कि फुलेरा गांव आपको जाने नहीं देगा।र)