गोसाईं दत्त कैसे बने सुमित्रानंदन पंत, जानिए उनके जीवन से जुड़ी ऐसी ही कई रोचक बातें

हिंदी साहित्य की दुनिया में जब महान लेखकों की बात होती है, तो सुमित्रानंदन पंत का नाम अवश्य लिया जाता है। छायावाद के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत का जीवन भी उनकी कविताओं की तरह प्रेरणादायक और रोचक रहा है। उन्होंने कम उम्र से ही कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं और पहाड़ों के प्रति उनका प्रेम उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से झलकता है। आइए जानते हैं 'प्रकृति के सुकुमार कवि' सुमित्रानंदन पंत के जीवन के बारे में कुछ खास बातें।

sumitra nandan pant

हिंदी साहित्य की दुनिया में जब महान लेखकों की बात होती है, तो सुमित्रानंदन पंत का नाम अवश्य लिया जाता है। छायावाद के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत का जीवन भी उनकी कविताओं की तरह प्रेरणादायक और रोचक रहा है। उन्होंने कम उम्र से ही कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं और पहाड़ों के प्रति उनका प्रेम उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से झलकता है। आइए जानते हैं 'प्रकृति के सुकुमार कवि' सुमित्रानंदन पंत के जीवन के बारे में कुछ खास बातें।

क्यों सुमित्रानंदन पंत ने बदला था अपना नाम?

सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को अल्मोड़ा जिले के कौसानी में हुआ था। जन्म के समय उनका नाम 'गोसाईं दत्त' रखा गया था, लेकिन बाद में उन्होंने इसे बदलकर सुमित्रानंदन पंत कर लिया। इसका कारण यह था कि गोसाईं नाम उन्हें तुलसीदास की याद दिलाता था, जिन्होंने काफी अभावों में जीवन बिताया था। पंत नहीं चाहते थे कि उनके जीवन में भी ऐसा हो, इसलिए उन्होंने अपना नाम बदल लिया।

बचपन और व्यक्तिगत जीवन

सुमित्रानंदन पंत ने जन्म के कुछ ही समय बाद अपनी माता को खो दिया, और उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। उन्हें सजने-संवरने का बहुत शौक था और वे बचपन में भी अलग-अलग तरह के कोट, टोपी और टाई पहनते थे। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि अगर उनकी पत्नी होती, तो वे उसे संवारते, लेकिन पत्नी नहीं होने के कारण वे खुद को संवारते रहते थे।

क्यों 'प्रकृति के सुकुमार कवि' कहलाए?

पंत का कविताओं के प्रति रुझान बचपन से ही था। चौथी कक्षा में ही उन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। छायावाद शैली के अंतर्गत उन्होंने प्रकृति और मानवीय भावनाओं का ऐसा अद्भुत संगम पेश किया कि उन्हें 'प्रकृति के सुकुमार कवि' कहा जाने लगा। उनकी कविताओं में प्रकृति का सजीव चित्रण और मानवीय भावनाओं का अनोखा संयोजन होता है।

विवाह न करने का कारण

सुमित्रानंदन पंत ने जीवनभर अविवाहित रहने का निर्णय लिया। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था कि पहाड़ों पर रहते हुए किसी स्त्री की ओर आकर्षित होना कठिन है। हालांकि उन्होंने विवाह नहीं किया, लेकिन उनकी कविताओं में प्रेम और सौंदर्य का अद्भुत चित्रण होता है।

प्रमुख रचनाएं

सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख रचनाओं में 'वीणा', 'पल्लव', 'गुंजन', 'युगवाणी', 'उत्तरा', 'युगपथ', 'चिदंबरा', 'कला और बूढ़ा चांद', 'गीतहंस', 'युगांत' आदि शामिल हैं। इनमें 'पल्लव', 'चिदंबरा' और 'कला और बूढ़ा चांद' को उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाएं माना जाता है।

पुरस्कार और सम्मान

सुमित्रानंदन पंत को उनकी रचनाओं के लिए कई पुरस्कारों से नवाजा गया। 'कला और बूढ़ा चांद' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला, जबकि 'चिदंबरा' के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले पहले हिंदी साहित्यकार थे। इसके अलावा उन्हें पद्म भूषण सहित कई अन्य पुरस्कार भी मिले।

सुमित्रानंदन पंत की रचनाएं केवल प्रकृति से प्रेरित नहीं थीं, बल्कि उनमें मार्क्स और फ्रायड की विचारधारा और आध्यात्मिकता का भी प्रभाव दिखता है। अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाले इस महान कवि ने 28 दिसंबर 1977 को दुनिया को अलविदा कहा।