आज से शुरू हुआ कार्तिक मास का पवित्र महीना, पढ़िए कैसे करें तुलसी जी की पूजा

कार्तिक मास के स्नान दान के साथ ध्यान जप का विशेष महत्व है। इस पूरे मास में भगवान विष्णु के साथ-साथ माता तुलसी की पूजा करना शुभ माना जाता है। कार्तिक मास 10 अक्टूबर से 8 नवंबर तक चलेगा। माना जाता है कि कार्तिक महीने में व्रत, स्नान और दान करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है। व्यापार और नौकरी में भी लाभ मिलता है। कार्तिक मास के दौरान रोजाना तुलसी जी की पूजा भी विधिवत करें।

tulsi pujan

कार्तिक मास के स्नान दान के साथ ध्यान जप का विशेष महत्व है। इस पूरे मास में भगवान विष्णु के साथ-साथ माता तुलसी की पूजा करना शुभ माना जाता है। कार्तिक मास 10 अक्टूबर से 8 नवंबर तक चलेगा। माना जाता है कि कार्तिक महीने में व्रत, स्नान और दान करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है। व्यापार और नौकरी में भी लाभ मिलता है। कार्तिक मास के दौरान रोजाना तुलसी जी की पूजा भी विधिवत करें।

माना जाता है कि भगवान विष्णु को तुलसी जी बेहद प्रिय हैं। इसी कारण कार्तिक मास में ही शालीग्राम के रूप में भगवान विष्णु और तुलसी का विवाह भी भी किया जाता है। इस मास में तुलसी जी की विधिवत पूजा करने से हर तरह के दुखों से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही अकाल मृत्यु का भय भी समाप्त हो जाती है।

कार्तिक मास में ऐसे करें तुलसी पूजन

कार्तिक मास में रोजाना सुबह उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ वस्त्र धारण करके एक लोटे में स्वच्छ जल भर लें। इसके बाद तुलसी के पौधे की जड़ में धीरे-धीरे अर्पित करें। इसके साथ ही तुलसी के गमले में स्वास्तिक का चिन्ह बना लें। आप चाहे तो रंगोली भी बना सकते हैं। अब पूजा आरंभ करें। सबसे पहले जल चढ़ाएं। इसके बाद तुलसी के पौधे पर फूल, माला, सिंदूर, अक्षत , चुनरी आदि चढ़ाएं। इसके बाद भोग लगाएं। घी का दीपक और धूप जलाकर इस मंत्र का जाप करें - श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृन्दावन्यै स्वाहा'अंत में विधिवत आरती कर लें। इस बपात का ध्यान रखें कि रविवार के दिन तुलसी को न छुएं। इस दिन तुलसी छुने से दोष लगता है।

इस मंत्र का करें जाप

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

तुलसी नामाष्टक मंत्र

वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।

एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम। य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।